Monday, April 20, 2020

Pratham diwas

इस लॉकडाउन के दौरान, महाभारत टीवी पर प्रसारित की जा रही हैं। उसी में एक प्रसंग के अंतर्गत, कर्ण के बाण अर्जुन के रथ को कुछ कदम ही सही, पर विपरीत दिशा की ओर धकेल देने में सक्षम होते हैं। फलस्वरूप, श्री कृष्ण कर्ण की प्रशंषा करते हैं।
वे परिणाम से अधिक परिश्रम की सराहना करते है। कर्म की प्राथमिकता दर्शाते हैं।
तो आज इन्होने ने ये सीख ले ली, और अगले दिन घर के सारे महत्वपूर्ण कार्य करने का निर्णय ले लिया।
वे सुबह जल्दी उठते है, और छत पर चादर बिछाकर पहले सूर्यनमस्कार करते है। सर्प्रथम ये योग गुरु का  स्मरण कर , प्रण तो सूर्यनमस्कार आसन  को बारह बार दोहराने का करते है, पर दो ही बारी में फाक्ता हो चले हैं।
"पहले दिन स्वास्थ के लिए दो बार भी काफी हैं। गुरूजी की बात कल सुन लेंगे। आज का योग परीश्रम  तो पूरा हो गया है।" कहकर आत्मग्लानि से बचते हैं।
फिर नीचे उतरकर झाड़ू उठाते हैं। भीतर के कमरे के एक कोने से सफाई शुरू करते हैं। कभी कुर्सियों को सरका कर, कभी बिखरे पड़े अख़बारो को समेटकर। अंतरालों में रुक-रूककर, कमर पर बाया  हाथ टिका कर, बचे हुए घर को दुखी मन से निहारते हैं। पहली बार ये स्वयं के  घर की भव्यता से ये अवगत हुए है।"जब बनाया था तब तो छोटा प्रतीत होता था। "
कुछ मिनिट बेहद कुशलता से झाड़ू चलती है, पर धीरे-धीरे जोश मर्सेडीज़ की क्वालिटी पाने की लालसा छोड़  मारुती ८०० में भी खुश हो जाने के लिए मोल भाव करने लगता हैं । अब इनकी झाड़ू फर्श पर इस रफ़्तार से चल पड़ी हैं, जैसे इन्हे अभी तैयार होकर, तुरंत देश के प्रधानमंत्री के साथ विश्व भ्रमण पर निकलना हो ।
जैसे पहले दिन सूर्यनमस्कार थोड़ा ही करना चाहिए, ठीक वैसे ही झाड़ू हल्की-हल्की भी चल जाती है।
आज नाश्ता भी इन्होने ही बनाना है। ग्रिल्ड वेज सैंडविच। मन तो इनका वैसे  ब्राउन ब्रेड की  सैंडविच का था, लेकिन कम्बख्त दुकानदारों ने लॉकडाउन  के चलते स्टॉक सिर्फ जीवनावश्यक वस्तुओ तक ही सीमित रखा।
सब्ज़िया भी मन माफिक ना मिली।
"आज के दिन सबसे स्वदिष्ट सैंडविच हमारे ही बनते। ऐसे जो अब तक किसी ने क्या चखे होंगे ? अरे क्या पनीनो, और क्या ईज़्ज़ा-पिज़्ज़ा? घर के बच्चे बाहर के अटरम-शटरम भूल जाते। रोज़ाना मेरे हाथो की सैंडविच खाने की ज़िद करते। "
खैर अब इन्ही सामग्रियों से सर्वश्रेष्ठ सैंडविच बनाने की प्रक्रिया आरम्भ की गयी ।
हाथ धोकर, पोछकर, ककड़ी, आलू, टमाटर काट के एक तरफ रख दिए गए। चीज़  भी फ्रीज से निकाला गया। केचप की बोतल  को थोड़ा ढूँढना पड़ा, पर आखिर में मिल ही गयी।
ग्रिल को गैस पर रखा गया। फिर ब्रेड के दो टुकड़ो के बीच ककड़ी, आलू, टमाटर का मसाला रखा गया। ऊपर से चीज़ किसकर डाला गया। फिर दोनों ब्रेड की परतो को बंद कर, गर्म ग्रिल पर रख दिए गया।
मन ही मन खुश हुए। खुद को शाबाशी  भी दे दी गयी।
जैसे कोहली को विश्व प्रसिद्ध बल्लेबाज बन ने में वक़्त लगा था, ठीक वैसे ही सर्वश्रेष्ठ सैंडविच बन में थोड़ा वक़्त तो लगेगा ही।
इसी बीच सरकारी नल से पानी आने लगा। फिर सोचा के सैंडविच तो गर्म हो रहे है तब तक पानी की मोटर शुरू कर के आता हूँ ।
मोटर शुरू कर के वापिस आये, तो देखा के सर्वश्रेष्ठ सैंडविच से धुआँ उठ रहा था। गैस तो हाई पर ही भूल कर चले गए थे।
झट से गैस बंद की। सैंडविच निकालना चाहा पर ब्रेड ग्रिल से चिपक गयी थी। धुएं के मारे धर्मपत्नी रसोईघर में दौड़ी चली आयी।
"अरे क्या जला दिए ?"
नज़र पतिदेव  पर पड़ी जो एक हाथ में धुआँ करती ग्रिल पकडे थे और दूजे से स्वर्गवासी ब्रेड को निकाल रहे थे ।
वो अब अपने  पति को उस न्यायाधीश की भांति देख रही थी, जिन्हे अभी रसोईघर में काम बढ़ाने के  जुर्माने स्वरुप, आजीवन रसोईघर से दूरी रखने की सजा का पात्र घोषित किया जाता।
घोषणा हो जाये उससे पूर्व पतिदेव ने प्रेमपूर्वक कहा "अरे पहले दिन इतना चलता है, परिश्रम देखो प्रिये, परिणाम नहीं। "