Wednesday, December 2, 2015

Darakht

गहरी है उनकी बाते
और उतने ही गहरे अंदाज़

दरख्तो पे बैठे अक्सर वो आँखे मुंद के बतियाते है
मानो अलग ही तिलिस्म में फाक्ता हुए जा रहे है।

सालो से ऎसी ही बातो का फलसफा दोहराया ,
दिन ब दिन
रात बे रात।

आज जब बगल से गुजरे,
तो  ध्यान आया की
कभी श्रोता थे हम भी उनके ,

दरख्त किनारे बैठ के,
बगलो में हाथ ठासे 

पर अब,
वक़्त नहीं है कह कर निकल जाते है।

बगलो में फाइल दबाये
चार बाय चार के मैदान में
चक्को में बंधे दरख्तो पर बैठने।