गहरी है उनकी बाते
और उतने ही गहरे अंदाज़
दरख्तो पे बैठे अक्सर वो आँखे मुंद के बतियाते है
मानो अलग ही तिलिस्म में फाक्ता हुए जा रहे है।
सालो से ऎसी ही बातो का फलसफा दोहराया ,
दिन ब दिन
रात बे रात।
आज जब बगल से गुजरे,
तो ध्यान आया की
कभी श्रोता थे हम भी उनके ,
दरख्त किनारे बैठ के,
बगलो में हाथ ठासे
पर अब,
वक़्त नहीं है कह कर निकल जाते है।
बगलो में फाइल दबाये
चार बाय चार के मैदान में
चक्को में बंधे दरख्तो पर बैठने।
और उतने ही गहरे अंदाज़
दरख्तो पे बैठे अक्सर वो आँखे मुंद के बतियाते है
मानो अलग ही तिलिस्म में फाक्ता हुए जा रहे है।
सालो से ऎसी ही बातो का फलसफा दोहराया ,
दिन ब दिन
रात बे रात।
आज जब बगल से गुजरे,
तो ध्यान आया की
कभी श्रोता थे हम भी उनके ,
दरख्त किनारे बैठ के,
बगलो में हाथ ठासे
पर अब,
वक़्त नहीं है कह कर निकल जाते है।
बगलो में फाइल दबाये
चार बाय चार के मैदान में
चक्को में बंधे दरख्तो पर बैठने।
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