Sunday, February 28, 2016

The Law of Conservation of Worries- (Part 1)

अच्छी पढ़ाई और अच्छा नाम दोनों ही कमा लिए थे।आस पास के लोगो के लिए अभी ये शर्माजी के बेटे का काम कर रहे थे।बच्चो को अब इनके नाम से समझाया जाने लगा था। खैर, ये दिन भी आने ही थे। सो पन्ने पलटाये, इन्होने sports पेज की और रुख लिया। ज्यादा शौकीन न थे क्रिकेट के बस खबरो से नजरे फिरा लेते थे। देश का नमक इन्होने भी खाया है। नमकहरामी कैसे करते ? दोस्त इन्हे इनके ही मुल्क से रुखसत न कर देते !
"अरे भाई, क्रिकेट में दिलचस्पी नहीं रखते हो क्या "?
बगल में बैठे सुट्टेबाज ने दम भरते हुए कहा। अख़बार एक था पड़ने वाले तीन।  ये खुद , सुट्टेबाज महाशय, और 'हम आपके है कौन, जनाब'' .
स्पोर्ट्स पेज पर सरसरकार फिसलती नजरो से  सुट्टेबाज महाशय का BP बढ़ गया था। डर गए कही अर्थव्यवस्था  का पेज समझकर पन्ना पलट ना दे।
"अरे भाई किसे नहीं पसंद?" मुह बोले शर्माजी के बेटे ने सिगरेट के धुएं की जबरदस्त झड़ी को उंगलियो के पंखे से दूर करते हुए कहा। " लेकिन, और भी पेजेस है, जरा उनका भी मान रख लेते है, और एक बार उन्हें भी पढ लेते है।"
इसी बीच, अगल में बैठे 'हम आपके है कौन, जनाब '  ख़ामोशी से अख़बार पढने का लुफ्त ले रहे थे। बेफिक्र थे। असली हिंदुस्तानी।
और ये बरखुदार खुद,दोनों के बीच फँसकर  बैठे थे। तर्जनी और अंगूठे से अख़बार भींचे।
अगर दोस्त को लेने आना न होता तो सुबह सुबह कहा भीड़ भद्दके में रेलवे स्टेशन आते। ठंडी का मौसम, ऊपर से स्टेशन का शोर।
गाड़ी को आने में ५-१० मिनट और थे। सोचे थे के मूड कोई गरमा गरम समाचार पढके ही ठीक कर लेंगे। पहले ये ख्याल इन्हे  चाय को लेके आया थे, पर फिर चाय बनती देखी तो सारे स्टेशन में अखबार ही इन्हे सबसे सेहतमंद नजर आया।
वो ख्याल था, वो अख़बार का लेना और फिर एक बैठने लायक जगह का ढूँढना। चंद मिनट इसी में निकल लिए। काफी लोग प्लेटफार्म पर ही निद्रा के आलिंगन में थे। बाकि के कुछ सीटो पर। एक ही कुर्ची खाली थी। सुट्टेबाज और 'हम आप के कौन, जनाब ' के बीच। तब से अब तक, इतना ही वाकया बया करने लायक था।
"गेम खत्म हो गया है ये", सुट्टेबाज महाशय ने फिर प्लेटफार्म की छत निहारते  हुए ज्ञान अर्पण किया।
"Gentlemen's  game!" कश खींचकर। "अब ये कोहली वोहली के चाल चलन है कोई जेंटलमैन के ?"
'हम आपके है कौन, जनाब' अब पूरी तन्मयता से पढ  रहे थे। आँखे छोटी करके। न जाने स्पोर्ट्स पेज में ऎसी कौनसी रहस्मय, तिलिस्मी बातो का जिक्र था जो उन्हे बोधिसत्व ज्ञात हो रही थी ?
तभी गाड़ी आने का एलान हुआ।
बरखुदार ने महसूस किया की स्टेशन वो किसी मकसद से आये थे। इन दो जीवो के बीच सुबह गुजारने के लिए नहीं। अख़बार 'हम आपके है कौन , जनाब ' को देते हुए कहा की, 'लीजिये, मेरा पढ़ना हो गया है।'
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ट्रैन धड़धडाते प्लेटफार्म पर आ खड़ी  हुयी। शोर से चीखते इंजन, कसे हुए बोल्ट्स के खिचाव, जर जर  थमता लोहा, हल्के भूकम्प का आभास दे गया था।             \
दोनों मेजबानों को बिना अलविदा किये बर्खुदार ट्रैन की और लपक लिए।
ट्रेन आते ही बिखरी हुई भीड़ बोगियों के पास  पसर गयी।  नजरो के सामने सिर्फ़ ऊँची गर्दनो ने समां पट दिया।
ऊपर टंगी पट्टियों को देख वो खुद को  भीड़ की सुनामी से बचा रहे थे।

दोस्त है इनके एक  - 'happydent' नाम है उनका। बरखुदार उसी के लिए तकलीफ उठा रहे थे।

बरखुदार और happydent की दोस्ती पुरानी है। बारवी  के दोनों ने अलग विषय चुन लिए। बरखुदार ने इंजीनियरिंग में सुख पाया  तो  happydent ने मेडिसिन में।
पढ़ाई  खत्म करके happydent ने फ़ौरन नौकरी पकड़ ली थी। कौन भला वक़्त बर्बाद  करना पसंद करता है आजकल के अफ़लातून ज़माने में ।
नौकरी लगने के बाद वक़्त कम मिलता था , सो दोस्तों से बाते कम हो गयी। और बेचारा करता ही क्या? बरखुदार के साथ भी ऐसा ही हुआ लेकिन कुछ दिनो  के बाद।  तब  तक इन्हे लगता था के happydent अँगरेज़ बनते जा रहा है। अब उन्हें समझा के  घर का बावर्चीखाना बड़ा सेक्युलर है, वो मालिको में जात, पात , रंग , रूप  का भेद  नहीं देखता। वो तो बस पगार से मतलब रखता है।
 
happydent अछा शागिर्द  तो था ही, अब उम्दा मैनपावर में भी गिने जाने लगा था। बस कुछ ही वक़्त में तीन बार प्रमोशन, बढ़ोतरी और ऊपरी सुख सुविधाये  अलग से।
Happydent काफी महीनो के बाद  आ रहा था। जब भी आता है, तो प्रमोशन की खबर लेके आता है। न जानने इस बार क्या तीर मारा है पठ्ठे ने ?

AC First Tier के बाहर चक्को वाले दो सूटकेस बैठने की जगह पर  रख  खुद बाजु में खड़ा था।
बरखुदार को देख खुश हो गया।  गले मिला और बोला के "भाई, बैग  भारी है, इसलिए सुबह सुबह बुलाया।
  
"कोई नहीं,  वैसे भी मै सुबह सोने के अलावा करता ही क्या था ? " बरखुदार सूटकेस के वजन का अंदाज़ा लगाये जा \रहा था।
" हाँ कमीने, व्यंगकार बाद में बन, पहले एक बैग उठा, दूजा मै लेता हू।

दोस्ती में कुली बने बैठे तो ध्यान आया की सूटकेस काफी भारी था।

"यार, इतने तोहफे किस लिए भरा है इस नन्हे से सूटकेस में। हमे कह देता हम आ जाते। " बरखुदार से चुटकी लेते रहा नहीं गया।  जवाब में happydent  बस मुस्कुरा दिया।

फिर कहा, " ईसी सिलसिले में बात करनी थी।


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